बौद्ध सर्किट
कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने अपने जीवन का काफी समय इस परिपथ में व्यतीत किया था। बुद्ध ने व्यापक रूप से यात्रा कर ज्ञान प्राप्त किया और अपने संदेशों को सुदूर में फैलाया और अंत में इस क्षेत्र में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।
सर्किट में भव्य स्तूप, प्राचीन मठ, बौद्ध मंत्रों के बीच ध्यान और पूजा करना बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए अलौकिक अनुभव होता है।
बौद्ध भक्त उत्तर प्रदेश में भगवान बुद्ध के पूरे जीवन का अनुभव कर सकते हैं। ऐसा अनुभव किसी और जगह संभव नहीं है। यदि आप आत्ममंथन कर जीवन में ज्ञानार्जन करना चाहते हैं, तो यह सर्किट आप के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है।
कपिलवस्तु
- यहां राजकुमार सिद्धार्थ का बाल्यकाल बीता और इस कारण से इसे पवित्र माना जाता है।
- इसकी पहचान वर्तमान समय में सिद्धार्थनगर जिले में पिपहरवा टाउनशिप के रूप में की जाती है।
- यहां हजारों युग पहले की उस घटना का अनुभव किया जा सकता है, जब युवा राजकुमार सिद्धार्थ ने मोक्ष की तलाश में सभी सांसारिक धन और सुख का त्याग किया था।
कौशाम्बी
- इलाहाबाद से लगभग 60 किमी दूर इस स्थान पर बुद्ध ने कई धर्मोपदेश दिए थें।
- यह बौद्धों के लिए उच्च शिक्षा के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। यह उस समय के सबसे समृद्ध शहरों में से एक माना जाता है।
- खुदाई के दौरान यहां मूर्तियों, सिक्कों और टेराकोटा वस्तुओं की एक बड़ी संख्या के अलावा एक अशोक स्तंभ, एक पुराने किले और एक भव्य मठ के खंडहर का पता चला था।
सारनाथ
- वाराणसी से सिर्फ 10 किमी दूर इस स्थान पर भगवान बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद अपना पहला धर्मोपदेश दिया था ।
- महान धामेक स्तूप और उसके खंडहर अभी भी बुद्ध की शिक्षाओं की याद दिलाते हैं।
- 273-232 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक द्वारा स्थापित चमकदार स्तंभ बौद्ध संघ की नींव की निशानी है।
- इस स्तंभ के ऊपर के शेर को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है।
संकिसा
- मान्यता है कि स्वर्ग में अपनी मां को संबोधित करने के बाद भगवान बुद्ध ने यहां अवतरण लिया था।
- यह फर्रुखाबाद जिले में काली नदी के तट पर बसंतपुर गांव के साथ जुड़ा हुआ है।
- सम्राट अशोक ने इस पवित्र स्थान को चिह्नित करने के लिए यहां एक स्तंभ बनवाया था।
श्रावस्ती
- बहराइच से मात्र 15 किमी दूर इस जगह कई संरक्षित स्तूप और खंडहर हैं।
- प्राचीनकाल में यह कोसल साम्राज्य की राजधानी थी और यहां बुद्ध ने अपनी दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन कर उन लोगों को प्रभावित करने का प्रयास किया जो उनमें विश्वास नहीं करते थें।
- ऐसा माना जाता है कि इसे पौराणिक राजा श्रावस्त द्वारा स्थापित किया गया था। यहां बुद्ध ने अपने जीवन के 27 साल गुजारे थें।
कुशीनगर
- गोरखपुर से लगभग 50 किमी की दूरी पर कुशीनगर में बुद्ध ने अपनी आखिरी सांसें ली थीं।
- यहां महापरिनिर्वाण मंदिर में 1876 में खुदाई के दौरान मिली बुद्ध की एक विशाल मूर्ति स्थापित है।
- कुशीनगर में खुदाई से यह भी ज्ञात होता है कि यहां 11वीं सदी में भिक्षुओं का बड़ा समुदाय रहता था।