पर्व-मेले
रामलीला
रामलीला में भगवान राम के जीवन की कहानी को दर्शाया जाता है। महान संत तुलसीदास द्वारा इसे शुरू किया गया था। आज भी उनके द्वारा लिखित रामचरितमानस, रामलीला प्रदर्शन का आधार है। कुछ स्थानों पर, राम लीला विजयादशमी के मौके पर सितम्बर के अंत या अक्टूबर के शुरू में होती है। भगवान राम के जन्मदिन, रामनवमी के अवसर पर भी रामलीला का मंचन होता है।
इसका मंचन 7 से 31 दिनों में अलग-अलग कहानी के साथ प्रस्तुत किया जाता है। रामलीला प्रदर्शन में एक उत्सव का माहौल होता है और धार्मिक आस्था इससे जुड़ी हुई है। इसके मंचन में पोशाक, गहने, मास्क, टोपी, मेक-अप और सजावट का खास रूप से ध्यान रखा जाता है। रामलीला की चार मुख्य शैलियां प्रचलित हैं।
रामनवमी मेला
अयोध्या में अप्रैल के माह में रामनवमी मेले का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर हजारों भक्त कनक भवन में पूजा करने के लिए एकत्र होते हैं।
श्रावण झूला मेला
यह मेला देवताओं की चंचल भावना परिलक्षित करता है। श्रावण के दूसरे पखवारे के तीसरे दिन, देवताओं की मूर्ति (विशेष रूप से राम, लक्ष्मण और सीता ) को मंदिरों में झूलों में रखा जाता है। उन्हें मणि पर्वत भी ले जाया जाता है, जहां मूर्तियों को पेड़ की शाखाओं में बने झूलों में झुलाया जाता है। बाद में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को मंदिरों में वापस लाया जाता है। मेला श्रावण के महीने के अंत तक रहता है।
परिक्रमा
अयोध्या में हिन्दू तीर्थयात्रियों द्वारा परिक्रमा की जाती है। यह अलग-अलग अवधि की होती है। सबसे कम समय की परिक्रमा अंतरग्राही परिक्रमा है, जो एक दिन में समाप्त हो जाती है। पवित्र सरयू में डुबकी लेने के बाद भक्तगण नागेश्वरनाथ मंदिर से परिक्रमा शुरू करते हैं और अंत में कनक भवन पर समाप्त करते हैं। वे राम घाट, सीता कुंड, मणि पर्वत और ब्रह्मा कुंड से होकर गुजरते हैं। इसी प्रकार से पंचकोसी परिक्रमा में 10 मील की दूरी तय की जाती है। इस परिक्रमा के मार्ग पर नया घाट, रामघाट, सरयू बाग, होलकर-का-पुरा, दशरथ कुंड, जोगिना, रानोपाली व महेताबाग मुख्य रूप से शामिल हैं। भक्तगण परिक्रमा के मार्ग पर पड़ने वाले मंदिरों के दर्शन भी करते हैं।
चौदह कोसी परिक्रमा में 28 मील की दूरी तय की जाती है। यह वर्ष में केवल एक बार अक्षय नवमी के अवसर पर आयोजित की जाती है जो 24 घंटे में पूरी होती है।