देवा शरीफ
देवा शरीफ लखनऊ से 25 किमी दूर बाराबंकी जिले में मशहूर धार्मिेक स्थान है। यह स्थान महान सूफी संत हाजी वारिस अली शाह का केंद्र माना जाता है, जो विश्व बंधुत्व की एक मिसाल हैं तथा जिनका अवध के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है।
- हाजी वारिस अली शाह रहस्यमय शक्तियों के ज्ञाता माने जाते थे तथा वह सभी समुदायों के सदस्यों द्वारा श्रद्धेय हैं। इनके वालिद कुर्बान अली शाह भी एक सूफी संत थे। इनके श्रद्धालु दूर दराज से इनकी ‘मज़ार’ का दर्शन करने आते हैं जो ‘देवा शरीफ’ के नाम से मशहूर है।
- इस पवित्र स्थल पर पूरे वर्षभर उनके अनुयायियों का आना जाना लगा रहता है। अक्टूबर-नवंबर माह में यहां संत की स्मृति में वार्षिक उर्स का आयोजन होता है, इस मौके पर एक बड़ा मेला आयोजित होता है, जिसे देवा मेले के नाम से जाना जाता है। इस मेले के खास आकर्षण के रूप में मुशायरा, कवि सम्मेलन और संगीत कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
अयोध्या
लखनऊ से 110 किमी दूर सरयू नदी के दाहिने किनारे पर स्थित अयोध्या भगवान राम के जन्म स्थान के रुप में प्रसिद्व एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है। सदियों तक यह सूर्यवंश के वंशज की राजधानी रहा है, जिसके मुख्य राजा के रुप में भगवान राम का नाम आता है। प्राचीनकाल में इसे कौशल देश के रूप में जाना जाता था। स्कंद तथा कुछ अन्य पुराणों में अयोध्या को भारत के सात पवित्र शहरों में स्थान मिला है।
- अयोध्या को मुख्यतः मंदिरों की नगरी के रूप में जाना जाता है। हिंदू धर्म, बौद्व धर्म, जैन धर्म और इस्लाम के अवशेष अभी भी यहां देखने को मिलते है।
- जैन परंपरा के अनुसार पांच तीर्थकरों का जन्म अयोध्या में ही हुआ है। इसमें प्रथम तीर्थकर अदिनाथ (ऋशभदेव ) भी शामिल हैं। रामकोट, हनुमानगढ़ी, कनक भवन और सूरजकुंड यहां के मुख्य दर्शनीय स्थल हैं।
- सरयू एक पवित्र नदी है और प्राचीन शास्त्रों में भी इसका उल्लेख प्रमुखता से मिलता है। सैकेड़ों भक्त विभिन्न धार्मिक अवसरों पर यहां पवित्र स्नान के लिए वर्षभर आते हैं।
नैमिषारण्य
- लखनऊ से 95 किमी दूर सीतापुर जिले में स्थित यह पवित्र स्थान वैदिक युग से ही हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण तीर्थस्थान रहा है।.
- गोमती नदी के किनारे स्थित यह स्थान प्राचीन काल में कई संतों की तपस्या के कारण भी काफी प्रसिद्ध है।
- यहाँ स्थित चक्रतीर्थ, व्यास गद्दी, सूरजकुंड, पांडव किला, हनुमान गढ़ी और ललिता देवी मंदिर जैसे महत्वपूर्ण पूजा स्थल भक्तों को खास रूप से आकर्षित करते हैं।
- तीर्थयात्रियों के लिए नैमिषारण्य की परिक्रमा का विशेष महत्व है। यह हर वर्ष मार्च माह में आयोजित की जाती है।
बिठूर
कानपुर के बाहरी इलाके में गंगानदी के तट पर बिठूर के छोटे से मंदिर में शांतिपूर्ण ढंग से दिन गुजारना एक अलग तरह का अनुभव हो सकता है।
- बिठूर के बारे में कई किवदंतियां प्रसिद्व हैं। इसे सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा का वास होने के लिए जाना जाता है। कहा यह भी जाता है कि सीता ने निर्वासन के बाद यहां रहकर ही अपने जुड़वा बच्चों लव और कुश को जन्म दिया था।
- आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई और नाना साहेब पेशवा के कार्यक्षेत्र के रूप में भी इस स्थान को जाना जाता है।
- गंगातट से बिठूर में सूर्योदय और सूर्यास्त देखने का भी अपना अलग अनुभव है। यहां वाल्मीकि आश्रम, ब्रहमवर्त घाट, ध्रुव टीला व नाना साहेब का महल भी दर्शनीय है।
नवाबगंज पक्षी विहार
- लखनऊ-कानपुर राजमार्ग पर झील और हरे-भरे नयनाभिरामी दृश्यों के बीच स्थित यह स्थान पर्यटकों को खास रूप से आकर्षित करता है।
- सर्दियों के मौसम में प्रवासी पक्षियों के साथ साइबेरियन सारस से यह स्थान गुलजार हो जाता है।
- इस प्रसिद्व पक्षी विहार को भारतीय व प्रवासी पक्षियों के घर के रूप में जाना जाता है। यहां हिरन पार्क, नौकायन और वाच टावर की व्यवस्था भी है।
दुधवा
लखनऊ से 265 किमी दूर लखीमपुर खीरी की तराई तलहटी में नेपाल बार्डर पर यह राष्ट्रीय पार्क स्थित है।
- बाघों के संरक्षण के लिए इस स्थान का महत्वपूर्ण स्थान है। यह स्थान कुछ ऐसे क्षेत्रों में शामिल है जहां जैविक तंत्र के अनुरूप बाघों को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। दुधवा टाइगर रिजर्व के उत्तरी किनारे भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है, जबकि दक्षिणी सीमा सुहेली नदी से घिरी है।
- दुधवा गहरे घने जंगल और चरागाह के बीच न सिर्फ बाघ बल्कि तेंदुआ, हिरण और हथियों के लिए अभ्यारण है।
- यहां के अनुपम प्राकृतिक माहौल में 400 से अधिक प्रजाति के पक्षियों को भी देखा जा सकता है।
कतर्निया घाट
- बहराइच जिले में लखनऊ से 200 किमी दूर यह स्थान दुधवा टाइगर रिजर्व का हिस्सा है।
- यह घाट नेपाल में बरदिया राष्ट्रीय उद्यान की सीमा से जुड़ा हुआ है।
- गिरवा और कोर्डिया नदी जो बाद में मिलकर घाघरा बनती है।
- गिरवा नदी के ताजा पानी में डाल्फिन पाई जाती हैं।
- यहां आने वालों के लिए बाघ, तेंदुआ और हिरण को उनके प्राकृतिक निवास स्थान में रहते हुए देखने का सुखद अनुभव हो सकता है।