हस्तिनापुर, जिला मेरठ से 37 किमी एवं दिल्ली से 100 किमी की दूरी पर स्थित है, जो मेरठ-बिजनौर रोड से जुड़ा हुआ है। यह स्थान राजसी भव्यता, शाही संघर्षों एवं महाभारत के पांडवों और कौरवों की रियासतों का सक्षात गवाह है। विदुर टीला, पांडेश्वर मंदिर, बारादरी, द्रोणादेश्वर मंदिर, कर्ण मंदिर, द्रौपदी घाट एवं कामा घाट आदि जैसे स्थल पूरे हस्तिनापुर में फैले हुए हैं। हस्तिनापुर जैन श्रद्धालुओं के लिए भी काफी प्रख्यात है। वास्तुकला के विभिन्न अद्भुत उदाहरण एवं जैन धर्म के विभिन्न मान्यताओं के केंद्र भी यहां पर भ्रमण योग्य हैं, जैसे जम्बुद्वीप जैन मंदिर, श्वेतांबर जैन मंदिर, प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर, अस्तपद जैन मंदिर एवं श्री कैलाश पर्वत जैन मंदिर आदि। जंबुद्वीप में सुमेरू पर्वत एवं कमल मंदिर का तो पूरा परिसर ही भ्रमण योग्य है, हस्तिनापुर सिख समुदायों के लिए भी एक बड़ी मान्यता का केंद्र है
सरधाना मेरठ के पश्चिम में लगभग 22 किमी पर स्थित है। यह एक भव्य शहर है, जिसका अतीत काफी ऐतिहासिक रहा है। इसकी स्थापना फ्रेंच एडवेंचरर वॉल्टर रेनहार्ड्ट, सनैरा नाम से भी प्रख्यात, द्वारा 18वीं शताब्दी में कराई गई थी । सनैरा सन् 1754 में ईस्ट इंडिया कंपनी के बतौर सैनिक भारत आए थे | सन् 1778 में इनकी मृत्यु के पश्चात, बेगम योहाना समरू, इनकी विधवा द्वारा गद्दी संभाली गई, जिन्होंने सरधाना में रोमन केथलिक चर्च की स्थापना कराई। भव्य चर्च, जिसे अब “श्राइन-बेसिलिका ऑफ आर लेडी ऑफ ग्रेसेज़” के नाम से जाना जाता है, का निर्माण फरज़ाना बेगम, सरधाना की राजकुमारी द्वारा कराया गया था। इसका कार्य वर्ष 1809 में शुरु हुआ था एवं सन् 1822 में समाप्त हुआ था। उस समय इसकी लागत 04 लाख से भी अधिक थी | सन् 1924 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इस इमारत को संरक्षित घोषित कर दिया गया एवं 1961 में यह बेसिलिका के नाम से प्रचलित हो गया। सरधाना में गुजरन गेट पर शिव महादेव मंदिर एवं समरू महल भी कुछ महत्वपूर्ण स्थलों में से हैं।
मालिक जाटों का यह गाँव हिंडन नदी के किनारों पर एक पहाड़ी पर बसा हुआ है । यह मंदिर उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद में स्थित है । यहाँ भगवान शिव को समर्पित एक अति प्राचीन मंदिर है जहाँ साल में दो बार शिव भक्त हरिद्वार से पवित्र गंगा जल लेकर भगवान शिव के अभिषेक हेतु यहाँ तक पैदल यात्रा करके आते हैं । इस गाँव में भगवान शिव के इस मंदिर की तलहटी में श्रावण मास की चतुर्दश को ( अगस्त-सितंबर में लगभग) तथा फाल्गुन मास(फरवरी) में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है । पुरा महादेव बलेनी नगर से मात्र 3 किमी की दूरी पर स्थित है, यह गाँव अच्छी तरह से सड़क मार्ग द्वारा मेरठ (32 किमी) एवं बागपत (28 किमी) से जुड़ा हुआ है।
ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में परशुराम जी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यहाँ कड़ी तपस्या की थी तथा इस मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित किया था । भगवान शिव परशुराम की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रकट हुए थे तथा उन्होनें परशुराम जी की दो इच्छाओं को पूर्ण भी किया था। उसमें से पहली इच्छा यह थी कि परशुरामजी की माताश्री जीवित हो जाएँ तथा दूसरी इच्छा संपूर्ण विश्व के कल्याण की थी । यह भी मान्यता है कि ऋषि परशुराम ने यहाँ एक शिव मंदिर स्थापित किया तथा इस स्थान को शिवपुरी नाम दिया जो कालांतर में शिवपुरा हो गया तथा और भी छोटा होकर आज “पुरा” गाँव के नाम से जाना जाता है ।